Friday, February 17, 2017

Khalanga:The Goorkha British war 2

दक्षिण में शिवालिक और उत्तर में हिमालय की  पर्वतमाला का  घाटी की जैवविविधता को नियंत्रित करने में बड़ा योगदान है। साल ,तुन ,शीशम ,खैर ,सिरिस ,सैंज , ढाकऔर पीपल प्रजाति  के पेड़ समूची घाटी की शोभा बढ़ाते थे। सेमल के विशाल वृक्ष पक्षियों और मनुष्यों को समान रुप से भोजन उपलब्ध कराते थे। घाटी में कई झीलें  और तालाब थे जिनमें जोगीवाला की झील और नमभूमि सबसे बड़ी थी जोकि दो मील लंबी और आधा मील चोड़ी थी। सोंग और सुसवा नदी घाटी के उत्तरी हिस्से में और कई नम शेत्र बनाते हुए गोसाईंवाला झील से होते हुए गंगा में मिल जाती थीं। इसके अलावा कांवली ,भारूवाला और सहसपुर में भी तालाब और झीलें थीं। घाटी की झीलें अनादि काल से स्थानीय एवं प्रवासी पक्षियों को आमंत्रित करतीं थी और यहाँ के निवासियों के पीने के पानी का इंतज़ाम भी करती थीं। पहाडी उत्पत्यका होने के कारण कुऍं कुछ ही इलाकों तक सीमित थे। संपूर्ण घाटी में खेती पाती का इंतजाम इन्ही नदियों ,झीलों और तालाबों के माध्यम से ही होता था।   

Thursday, February 16, 2017

khalanga:The story of Goorkha British war

अक्टूबर का महीना था। मौसम में परिवर्तन हो रहा था। बारिशों के लम्बे दौर के बाद सुबह शाम ठंड महसूस होने लगी थी। घाटी की सभी नदियां और नाले पहाड़ो से आने वाले पानी से भरपूर थे। चारो ओर हरियाली छाई थी और सभी पेड़ पौधे मानो स्नान कर मखमली धूप में चमचमा रहे थे। जहाँ एक ओर साल  के घने जंगल थे वहीँ हरी घास के मैदान घाटी की सुन्दरता में चार चाँद लगा रहे थे। गंगा और यमुना के मध्य स्थित दून घाटी का सौंदर्य अपने चरम पर था। पहाड़ों से आने वालीं बिंदाल ,रिस्पना ,टोंस और पहाड़ों के समानांतर बहने वाली आसन नदी पर सूर्य की किरणें सुबह से शाम तक अठखलियां करती तमाम घाटी के बाशिंदो की प्यास बुझाने का काम भी करती थीं। विभिन्न प्रजातियों के तोते आकाश में उड़ान  भरते नज़र आते बुलबुल और मैना की चहचाहट से जंगल और मैदान गूंजते रहते थे। जंगली जानवरों की आमद बस्तियों तक थी। शेर और गुलदार बेख़ौफ़ पालतू जानवरों को अपना शिकार बनाते और यदा कदा  आदमख़ोर भी हो जाया करते थे।