अक्टूबर का महीना था। मौसम में परिवर्तन हो रहा था। बारिशों के लम्बे दौर के बाद सुबह शाम ठंड महसूस होने लगी थी। घाटी की सभी नदियां और नाले पहाड़ो से आने वाले पानी से भरपूर थे। चारो ओर हरियाली छाई थी और सभी पेड़ पौधे मानो स्नान कर मखमली धूप में चमचमा रहे थे। जहाँ एक ओर साल के घने जंगल थे वहीँ हरी घास के मैदान घाटी की सुन्दरता में चार चाँद लगा रहे थे। गंगा और यमुना के मध्य स्थित दून घाटी का सौंदर्य अपने चरम पर था। पहाड़ों से आने वालीं बिंदाल ,रिस्पना ,टोंस और पहाड़ों के समानांतर बहने वाली आसन नदी पर सूर्य की किरणें सुबह से शाम तक अठखलियां करती तमाम घाटी के बाशिंदो की प्यास बुझाने का काम भी करती थीं। विभिन्न प्रजातियों के तोते आकाश में उड़ान भरते नज़र आते बुलबुल और मैना की चहचाहट से जंगल और मैदान गूंजते रहते थे। जंगली जानवरों की आमद बस्तियों तक थी। शेर और गुलदार बेख़ौफ़ पालतू जानवरों को अपना शिकार बनाते और यदा कदा आदमख़ोर भी हो जाया करते थे।
No comments:
Post a Comment